meri awaz
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चीखती चिल्लाती मैं, दम तोडती मैं.
अंधेरो के साये में,गरीबी में जीती मैं.
हूँ गरीबों की शान मैं,
झांकती टूटती झोपड़ी से मैं.
अंग्रेजो के दामन से छूटी मैं,
तो अपने लोगो से मर गयी मैं.
नेहरु गाँधी युग की शोभा से सजी मैं,
फिर भी हूँ अपनों में बेगानी सी मैं.
आज़ादी के बाद उर्दू तो बन गयी पाकिस्तान की शान,
फिर क्यों रह गयी आज अंग्रेजी की गुलाम मैं.
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