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मैं कुछ समय से टी. वी. में दिखाए जा रहे महाभारत को देख रही हूँ , जिसका कारण महाभारत का अधूरा ज्ञान या मेरी रुचि हैं …उसमे दिखाया गया कि द्रोपदी का स्वयंवर हुआ जिसमे पाँचो पांडवो ने द्रोपदी से विवाह किया जिसका कारण धर्म की रक्षा करना बताया गया … युधिष्ठिर का कहना था कि उनकी माता कुंती द्वारा दिया गया आदेश कि अर्जुन को जो भी दान में मिला है उसे वो पाँचो भाई आपस में बाँट ले…उनकी माता कुंती ने अनजाने में द्रोपदी का वात दान पाँचो भाइयों में कर दिया। जिस कारण उनका अनजाने में द्रोपदी से सम्बन्ध हो गया… इस कारण या तो वो द्रोपदी से विवाह करने के लिए विवश हैं या सन्यास लेने के लिये… माना पाँचो पांडवो ने ये सब धर्म की रक्षा के लिए किया और अपनी माता के मान के लिए किया, लेकिन क्या उन लोगो ने अपने धर्म की रक्षा के लिए द्रोपदी का धर्म भ्रष्ट नही किया। क्या हमारे पवित्र ग्रन्थ हमें अनुमति देंगे कि अपने धर्म कि रक्षा के लिए दूसरे का धर्म भ्रष्ट कर दो ? अगर द्रोपदी पाँचों में बँट भी गयी थी तो पाँचों में कोई उनको भाभी की तरह या फिर कोई अपनी बहु की तरह भी बाँट सकता था। फिर ये पांडवो का कैसा धर्म था, जिसमे एक स्त्री को पाँच पुरुषो में बाँट दिया। और फिर युधिष्ठिर का धर्म तब कहा गया था जब उन्होंने चौपड़ के खेल के मनोरंजन के लिए द्रोपदी को दाव पर लगा दिया, तब उनके धर्म ने उन्हें किस प्रकार किसी स्त्री को दाव पर लगाने की अनुमति दे दी… और द्रोपदी का भरी सभा में अपमान हुआ… फ़िलहाल ये तो हमारे महाकाव्य काल की बात थी जब स्त्री का स्वयं निर्णय लेने का अधिकार नही था और वो पूरी तरह से पुरुषों पर आश्रित थी… लेकिन आज भी स्थिति में कोई बदलाव नही दिखता, कुछ महानगरो को छोड़ दिया जाये तो आज भी परिस्थिति में ज्यादा बदलाव नही हुआ हैं…
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