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आज बहुत दिनों के बाद राजनीतिक माथापच्ची को पढ़ने के बाद मन हुआ कि अपने कुछ विचार लोगो के साथ बांटें जाये। माथापच्ची ही तो है ये राजनीतिक विचारधारा, जहाँ ना नेताओ के दिमाग का पता होता हैं ना तो जनता के दिमाग का… कि कब किसी के बारे में कुछ बोल दिया जाये या किसी भी नेता जी के गाल में थप्पड़ मार कर उसको उसकी गलती का अहसास करा दे कि आपने इस चुनाव में खड़े होकर हमारे विकास की जो दिमागी खुड़पेंच रची है वो गलत है… माना कि थप्पड़ मारने वाला तो शिक्षित नही था कोई ऑटो चालक था…लेकिन हमारे मंत्री जो स्वयं अपने शिक्षित होने का दावा करते है और दूसरे नेताओ पर भद्दी टिप्पणी करते है सिर्फ अपने आपको या अपनी पार्टी को महान दिखाने के लिये…अगर आप सच में सही हो और आपने जनता के हित में काम किया है तो आपको किसी पर गन्दी टिप्पणियां करने की जरुरत ही नही है…जैसे आज पेपर में हमारे प्रदेश के मुख्यमंत्री जी ने टिप्पणी की जिसे मैं पढ़कर हैरान थी कि हमारे मंत्री जी जिन्होंने खुद विदेशी शिक्षा ग्रहण की है और वो अपने आपको इतना सभ्य होने का दावा करते है फिर उन्होंने इतनी असभ्यता कैसे दिखा दी… इनके पिताजी ने तो असभ्यता दिखाई ही थी जो एक बार मान्य है क्योकि इतने पुराने राजनीतिक दांव खेलते-२ आपके राजनीतिक विचार भी गंदे हो जाते है…खैर ये तो सिर्फ एक बात पर प्रकाश पड़ता है…लेकिन हमारे देश में तो शायद सभी नेता ऐसे ही है जो अपने आपको महान दिखाने के लिए दूसरे पर उंगली उठाते रहते है… ये सब करने की क्या जरुरत है अगर आपने काम किया है तो जनता को दिखाई देगा, वो फिर से आप पर विश्वास करके आपको वोट देगी। मुझे लगता है कि या तो जनता मूर्ख है जो ऐसे नेताओ का चुनाव करती है जिनकी मानसिकता इतनी गन्दी है कि वो दूसरो को भी उसी तराजू में तौलने लगते है या तो चुनाव में खड़े होने वाले नेता मूर्ख है जो ये समझते है की कुछ भी बोल कर जनता से वोट लेकर उनकी भावनाओ के साथ खेला जा सकता है…
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