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आज 18 जुलाई वो ऐतिहासिक दिन है जब आज के दिन 1947 को हमारी स्वतंत्रता का बिल ब्रिटिश संसद में पास हुआ…3 जून की माउण्टबेटन योजना सफल होने के बाद साम्प्रदायिक हिंसा का परिणाम हमारे देश की आज़ादी और देश के विभाजन के रूप में सामने आया… जिसका परिणाम आजतक दोनों देश दुश्मनी की रूपरेखा के फलस्वरूप भुगत रहे है… ये एक सोची समझी साजिश थी जो आज भी सफल है. जब 1857 का विद्रोह जिसको धर्म युद्ध, काले गोरो का युद्ध और ना जाने क्या-२ कहा गया ये उसी विद्रोह का दण्ड था जो देश के विभाजन और हिन्दू-मुस्लिम फूट के रूप में सामने आया…जब अँगरेज़ उस समय के बड़े-२ विद्रोह दबाने में सफल हुए तो क्या वो इस 1947 को हुए कत्ले-आम को रोकने में सफल नही हो सकते थे… लेकिन उन्होंने ऐसा कुछ नही किया…आखिर वो अपनी साज़िश को सही दिशा देकर देश को बर्बाद करने की योजना सफल करना चाहते थे…इस ग़दर के भयानक दृश्य को देख कर आज़ादी का बिल इतनी जल्दी में बनाया गया और पास किया कि देश को विभाजित करने वाली लाइन जिसको सर रेडक्लिफ ने नक़्शे में देख कर दोनों देश की बॉर्डर लाइन तैयार की वो ऐसी थी जो उस समय किसी के घर, गलियाँ, सड़कों के बीच से निकली। माउंटबेटेन जो उस समय अविभाजित देश और स्वतंत्र भारत के पहले गवर्नर जनरल थे उनका प्रभाव उस समय देश में इतना था कि हमारे प्रधानमंत्री पंडित नेहरू उनकी ही भाषा को समझते थे. सिर्फ एक माउंटबेटेन ही ऐसे थे जिनके सुझाव पर नेहरू जी कश्मीर मुद्दे पर कोई ठोस कदम नही उठा पाये… जो आज भी गले की फाँस बनकर दोनों देशो में अटक रही है और उस विवादित कश्मीर का फायदा आज चीन जैसे देश अपनी तरक्की के लिए उठा रहे है. अगर यहाँ पर अपनी आज़ादी की कहानी लिखी जाये तो शायद थोड़े शब्दों में खत्म नही होने वाली। आज अगर देखा जाये तो आज़ादी के इतने वर्षो के बाद भी हमारे देश में विदेशी प्रभुत्व खत्म नही हुआ है वो किसी न किसी रूप में उजागर होता ही रहता है चाहे वो ऑपरेशन ब्लू स्टार हो या मंत्रियों को सत्ता में लाने की बात हो या संस्कृति की बात हो या फिर अंग्रेजी भाषा का दबदबा हो… आखिर लार्ड मैकाले की योजना कि ” ब्राउन रंग के अंग्रेज” आज काफी हद तक सफल होती नज़र आती है…
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