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बारिश हैं भीगी सी पर याद तुम्हारी आ रही है…
कुछ अधूरा सा छूट गया हैं फिर भी तुम्हारी आहट सी है…
वो घर का आँगन जहाँ खेलते थे हम दोनों गुरियां का खेल…
वो सावन भी थम गया जो कभी गरजता था बन कर शेर…
लड़ना झगड़ना भूल कर खाने की थाली में एक साथ खाना…
जब एक रूठे तो दूसरे का जबरदस्ती प्यार से मनाना…
कभी था हाथो की डोर में वो प्यार का रंग…
जब दोनों साथ किताबो में देखते थे सपने संग…
वो रात भर जग कर करना बातें हजार…
पीछे मुड़ के देखे मन तो मिलती है यादें कई बार…
वो स्कूल की यादें भी निकली कितनी छोटी…
जब देख कर हँसते थे एक-दूसरे की टेडी सी चोटी…
वो हमारी यादें हमारी छोटी-२ सी कहानियाँ…
बुनते थे उस झूले में जो छूता था हमारी ऊचाईयां
वो हमारे एहसास हमारे जज़्बात
जब करते थे हम घर में शैतानी कई बार…
इसीलिए छूट गया है अधूरा सा कुछ…
जो अब याद आएगा ना जाने कितनी बार…
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