Menu
blogid : 17901 postid : 911555

पिता शब्द से अनजान लाखो में एक और छोटी सी कहानी।

meri awaz
meri awaz
  • 23 Posts
  • 99 Comments

पितृ दिवस एक बेहद ही खास दिन उन सभी के लिए जो अपने जीवन में पिता की छाया को महसूस करते हैं और उतना ही पिता के प्यार से पोषित होने का एहसास भी रखते हैं. पिता की आँखों के सपने उनके बच्चे पूरे करते हैं और उनका मान बढ़ाते हैं तो वही बच्चो को जीवन में सही मार्गदर्शन और सही ज्ञान का पाठ पिता की कठोरता से मिलता हैं. पिता अवश्य ही कठोर होते हैं लेकिन उनके मन में कितनी कठोरता हैं वो तो हम उनके लाडले बच्चे अच्छे से जानते हैं :-). आज एक ऐसी ही कहानी यहाँ एक 8 साल की बच्ची की जो शायद अपने पिता को तो जानती हैं अच्छे से पहचानती भी हैं लेकिन उनके प्यार से काफी छोटे से ही अनजान हैं। वो तो शायद ये भी नही जानती कि कैसे पापा की लाडली बनकर अपनी सारी मांगे पूरी कर ली जाये, उनसे कह कर अपनी प्यारी गुड़िया मंगवा ली जाए और वही नशे की लत से पीड़ित पिता अपने बच्चों की क़द्र नही जानता । उनको बड़ा होते हुए भी नही देखना चाहता क्योकि उसको नशे की लत से मरते हुए जीना अपने परिवार के सुख से ज्यादा प्यारा हैं। माँ किसी तरह घर चला रही और अपने बच्चो को पाल रही हैं. इसीलिए 8 साल की बच्ची घर की रखवाली के साथ-२ खाना भी बना लेती हैं और बड़ो जैसी समझ भी रखती हैं. जब भी माँ को गुस्सा आता तब सारा गुस्सा अपने बच्चो पर उतारती हैं और तब वहां उसे बचाने और उसके आसूं पोछने के लिए उसके पिता का दुलार उसको मेरी गुड़ियाँ, मेरी लाड़ली, मेरी प्रिंसेस कहने के लिए नही होता। वही नन्ही सी बच्ची आज फिर अपनी माँ से मार खा रही हैं क्योकि आज वो नन्ही सी बच्ची नन्ही नही थी बड़ी हो गयी थी, आज जन्म देने वाली माँ को उसने गालियां सुनाई थी और बुरा भला कहा था क्योकि उसकी परवरिश में पिता की कठोरता और माँ की ममता के संस्कारो का आभाव था. उसको शायद अपने आप ही अच्छे बुरे की समझ हो गयी वो भी बिना ये जाने कि वो किस कीचड़ में पैर रख रही. अगर आज पिता के साथ उनकी कठोरता, संस्कारो का ज्ञान और उनका प्यार-दुलार होता और साथ ही माँ की सही देखरेख और परवरिश भी सही होती तो आज वो अपनी मासूमियत खोकर दुनियादारी में ना पड़ती. सच में इस दुनिया में बच्चो को जीवन देने और उनका सही पालन करने के लिए ही भगवान पिता के नाम से दुनिया में निवास करते हैं और एक पिता का साया कितना जरुरी होता हैं इस बात से पता चलता हैं कि अगर आज उसके पिता उसके साथ होते तो आज वो बच्ची बचपन की पेंटिंग में रंग भरने के बजाय अपने से काफी बड़े उम्र के पड़ाव को पार करने में नही लगी रहती. ये तो सिर्फ एक कहानी किसी एक के बचपन के ख़्वाबों को धूल में मिलने को रेखांकित करती हैं लेकिन यहाँ जमीन पर उतर कर देखने पर लाखो कहानियों के कलाकार अपने-2 कैनवास के सामने ब्रश लिए खडें हैं.

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh