Menu
blogid : 17901 postid : 1107228

आज़ाद भारत

meri awaz
meri awaz
  • 23 Posts
  • 99 Comments

सूरज की पड़ती पहली किरण किसी नयी उम्मीदों और संभावनाओं का संसार लेकर आती हैं, उसी तरह से किसी देश के मुस्कुराते हुए बच्चे देश की समृद्धि और सशक्तिकरण के परिचायक होने की वजह बनते हैं. पेड़ो की साख से गिरते सूखे पत्ते भी सूखी धरती को पोषित कर जाते हैं. 15 अगस्त की सुबह जागने के बाद बाहर का नज़ारा देखने के लिए हाथ में पकडे हुए एक कप चाय के साथ आज़ाद भारत की हवा की खुशबू आ रही थी. कुछ बच्चे हाथ में छोटा तिरंगा लिए स्कूल जा रहे थे. सुबह का नज़ारा एक सुस्पष्ट गणतंत्र राज्य का चित्र प्रस्तुत कर रहा था. लेकिन पास ही खड़े कुछ बच्चे ऐसे भी थे जो हाथ में गन्दा सा झोला लेकर कूड़ा इकठ्ठा कर रहे थे. शायद इस बात से अनजान कि इस स्वतंत्र भारत को साकार रूप देने के फलस्वरूप इस दिन का उत्सव मनाते हैं. वो अपनी ही धुन में आसपास के वातावरण से बेगाने से होकर काम कर रहे थे. एक बार मन में बात उठी कि क्या आज़ादी के इतने वर्षो के बाद भी सही मायनो में हम आज़ाद हैं या किसी भ्रम में जी रहे हैं. गुलामी का उत्पीड़न कितना कष्टदायी होता हैं, इस बात को गन्दगी और बीमारी से घिरे हुए कुछ पैसे कमाते हुए बच्चो से अधिक कोई नही समझ सकता हैं. बच्चो के उज्जवल भविष्य के लिए हमारी सरकार ही क्या गुलामी के अफसरों ने भी ना जाने कितने कानून बनाये। उसमे से एक ब्रिटिश भारत के गवर्नर जनरल लार्ड रिपन के द्वारा 1881 में कारखाना अधिनियम बनाया गया, जिसमे 7 वर्ष से कम उम्र के बच्चो के कार्य पर प्रतिबन्ध लगाया गया था. इसी तरह के कुछ उदार कानून 1891, 1911, 1922 और 1934 में बनाये गए,जिसमे बच्चो को काम से थोड़ी स्वत्रंता दी गयी. हमारी सरकार ने भी बच्चो के शोषण के विरूद्ध बहुत से कानून बनाये हैं. हमारे संविधान में भी भाग 3, अनुच्छेद 21अ और 24 में मूल अधिकारों के अंतर्गत बच्चो को प्रारंभिक शिक्षा का अधिकार और कारखानो में बच्चो के नियोजन का प्रतिषेध करता हैं और मौलिक कर्तव्यों तथा राज्य के नीति निदेशक तत्वों में भी बच्चो की प्रारंभिक अनिवार्य शिक्षा पर अनुच्छेद प्रस्तुत किये गए हैं. इन सबके बाद भी, हमारी सरकार नए कानून पारित करके बच्चो की उन्नति पर ध्यान देती हैं. लेकिन क्या ये सब एक उपयुक्त सफ़ल पोषित राज्य को परिभाषित करते हैं ? अगर देखा जाये तो उत्तर शायद हाँ होता,लेकिन तर्क के पन्नो में झाँकने पर कहानी अधूरी सी लगती। क्या विकास के लिए सिर्फ कानून पारित करना ही उचित हैं ? अगर ऐसा होता तो शायद उस दिन वो बच्चे भी स्कूल जाते और आज़ादी मनाते। धुंधले आईने में देखने पर आज़ाद भारत की तस्वीर आज भी गुलामी की छाया का गहरा रंग दे जाती हैं. जहाँ आज भी मासूम बच्चे इतने सारे कानूनो और उपायो के बाद भी गन्दगी में पलने और काम करने के लिए मजबूर होते हैं. अंततः आज भी लाखो परिवारो की उम्मीदे गन्दगी में जीने और विकास के रास्ते को पाने में असफल से कूड़े के ढेर के समान बहिष्कृत पड़े हैं.

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh