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भारत एक संप्रभु गणराज्य की परिभाषा को परिभाषित करने वाला एक सुस्पष्ट शब्द की गणना में अग्रणी प्रतीत होता हैं. यहां प्रतीत शब्द की संज्ञा देना उचित नही होगा… क्योकि हमारा देश एक सुपरिभाषित गणतंत्र की प्रक्रिया में अतीत काल से ही परिभाषित होता आया हैं…यहां सभी धर्मो का सामान रूप से ही अनेकता में एकता सिद्धांत का पोषण होता आया हैं. इस बात की गवाही हमारे ऐतिहासिक पन्नो में छिपी कहानियां भी देती हैं. ये देश एक मौर्या से लेकर मुग़ल जाति के बादशाहो के बाद अंग्रेजी शासन की भी भक्ति को स्वीकार्य करता था और आज एक गणतंत्र धर्मनिरपेक्ष राज्य की तरह भारतीयों द्वारा शासित होता हैं. लेकिन कितना सच छिपा हैं हमारी अनोखी विरासत में इस बात का पता तो आने वाली पीढियां बताती हैं. वक़्त के साथ होने वाले परिवर्तन, अलग किस्म की सोच, भावात्मक लगाव से विच्छेद और खुद की सत्ता की स्वीकृति को सर्वोपरि स्तर पर लागू करने की मानसिक विकृति ही शायद अनेकता में एकता सिद्धांत में बाधा बनती हैं. आज ये सोच सिर्फ मुस्लिम बहुल इलाको सीरिया इराक़ जैसे देशो में ही नही बल्कि भारत में भी देखने को मिलती हैं. जहाँ एक ओर तेलंगाना जैसा राज्य बनता हैं तो दूसरी ओर दक्षिण भारतीय राज्य अलग राष्ट्र की मांग में पीछे नही रहते. शायद यही एक कारण होगा कि इस्लामिक स्टेट ऑफ़ इराक एंड सीरिया जैसा आतंकवादी संगठन 2020 तक पूरे भारत में अपने पैर जमाना चाहता हैं. इस बात के प्रमाण कश्मीर में लहराए गए ISIS के झंडे देते हैं. और हम सभी इस खतरनाक आतंकवादी संगठन से अच्छी तरह से परिचित हैं और हम चीन जैसे देश के इरादो के भी जानकार हो गए हैं. शायद ये एक तरह से व्यंग करने योग्य वाक्य बन गया हो लेकिन इस बात में कितनी सच्चाई हैं इस बात का पता पूर्वोत्तर राज्यों में सक्रिय नौ आतंकवादी संगठनो के इरादो को देख कर पता चलता हैं जो पूर्वोत्तर राज्यों, उत्तरी बंगाल, और म्यांमार, भूटान जैसे देशो को मिलाकर एक नए राष्ट्र की नींव रखने की योजना बना रहे हैं जिसका नाम “पश्चिमी दक्षिणी पूर्व एशिया” होगा। भारत वैसे भी माओवादी तथा पूर्वोत्तर में आतंरिक अशांति का शिकार हैं जिसकी प्रमुख वजह चीन की बढ़ती महत्वाकांक्षाएं हैं और यहाँ भी इस आतंकवादी संगठन के लिए चीन ही जिम्मेदार हैं जो म्यांमार के कचिन प्रान्त में स्थापित उसके असाल्ट राइफल्स के कारखानो से हथियारों की आपूर्ति करता हैं और उग्रवादी संगठनो की हर प्रकार से सहायता करता हैं.पूर्वोत्तर भारत में युद्ध विराम, शांति वार्ताएं तथा त्रिपुरा से सशस्त्र सुरक्षा बल विशेषाधिकार कानून(अफ्स्पा ) को हटाये जाने की प्रक्रिया के बाद से उग्रवादी हमलो में बढ़ोत्तरी हुई हैं. जो किसी भी तरह से मुमकिन शांति प्रक्रिया को स्वीकार करने के बाद अस्वीकार करती हैं. 17 अप्रैल 2015 को उग्रवादी संगठनो की बैठक के बाद “यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ़ वेसिया” अस्तित्व में आया जो नौ उग्रवादी संगठनो से मिलकर बना. जिसमे प्रमुख रूप से “नेशनल सोशलिस्ट कौंसिल ऑफ़ नागालैंड” तथा “यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ़ असम (उल्फा)” सक्रिय हैं. क्रमशः “नेशनल सोशलिस्ट कौंसिल ऑफ़ नागालैंड” प्रमुख “एस एस खपलांग” को “यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ़ वेसिया” का प्रमुख तथा “उल्फा” प्रमुख “परेश बरुआ” को संयोजक और हथियारों की आपूर्ति तथा विदेशी एजेंसियों से संपर्क की जिम्मेदारी सौंपी गयी हैं. इस बात में कोई दो राय नही कि आतंकवादी संगठनो द्वारा पोषित राष्ट्र भविष्य के लिए कितना भयानक दृश्य प्रस्तुत करेगा. यदि सही समय में सही कदम नही उठाये गए तो हमारी प्राकृतिक विरासत से परिपूर्ण पूर्वोत्तर राज्यों को हमे सदैव के लिए खोना पड़ जायेगा. भारत सरकार को इस दिशा में अब ठोस कदम उठाने चाहिए. वहां की वित्तीय समस्यायों के लिए और अधिक वित्त तथा सुविधा उपलब्ध कराने चाहिए. पूर्वोत्तर में सेना की कार्यवाही और अफ्स्पा की गतिविधियों को भी कम करने के उपाय करने होंगे। पूर्वोत्तर राज्यों की सक्रियता को संसद में बढ़ाने पर ध्यान देना होगा तथा मणिपुर जैसे राज्य में 25% तथा सभी पूर्वोत्तर राज्यों में उपस्थित 70 लाख बेरोजगार युवाओ को सही दिशा देकर काफी हद तक इस समस्या से निज़ात पायी जा सकती हैं.
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