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भारत में उच्च शिक्षा का स्थान

meri awaz
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समावेशी शिक्षा को अधिक बल देने के उद्देश्य से केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री श्रीमती स्मृति जुबिन ईरानी जी के द्वारा उच्च शिक्षण संस्थानों के लिए अपनी तरह का पहला स्वदेशी रैंकिंग प्रणाली ‘राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग रूपरेखा’ (National Institusional Ranking Framework NIRF) 29 सितम्बर 2015 को जारी किया गया। नयी रैंकिंग प्रणाली के आधार पर रैंकिंग अगले वर्ष जारी की जाएगी। जिसका लक्ष्य वैश्विक प्रतिस्पर्धी माहौल के लिए भारतीय शिक्षण संस्थानों को तैयार करना रखा गया हैं। यह प्रणाली वैश्विक मानको से अलग महत्व रखते हुए देश विशेष मापको के आधार पर संस्थानों का मूल्यांकन करेगी तथा संस्थानों के शिक्षण गुणवत्ता को वैश्विक मानको के अनुरूप समृद्ध करने में सहायता करेगी। यह प्रणाली सभी संकायों तथा निजी एवं सार्वजनिक दोनों प्रकार के शैक्षिक संस्थानों के लिए होगी। मंत्रालय की इस अनोखी पहल में केन्द्र सरकार के द्वारा वित्तपोषित देश के सभी 122 संस्थान, जिनमे आईआईटी (IITs) और आईआईएम (IIMs) संस्थान शामिल हैं। यह रैंकिंग प्रणाली मुख्यतः दो श्रेणियों में विभाजित होगी, जिसमे ए श्रेणी के अंतर्गत अधिक स्वायतता प्राप्त तथा शोध पर अत्यधिक बल देने वाले शिक्षण संस्थान एवं बी श्रेणी के अंतर्गत विश्वविद्यालयो से मान्यता प्राप्त कालेजो को शामिल किया जायेगा जो शिक्षण पर अधिक ध्यान देते हो।
इससे पहले भी 10 सितम्बर 2015 को केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री जी के द्वारा प्रशिक्षण को ध्यान में रखते हुए ‘राष्ट्रीय प्रशिक्षु स्कीम्स’ के लिए एक वेब पोर्टल को आरम्भ किया गया जो स्नातको, डिप्लोमाधारियो एवं 12वी पास वोकेशनल डिप्लोमाधारियो को समर्पित वेब पोर्टल का स्लोगन “सशक्त युवा सशक्त भारत” वाकई सशक्त भारत की नींव को रेखांकित करता हैं। भारत देश में डिजिटल इंडिया के तहत डिजिटल क्रांति के अतिक्रमण काल में सबसे पहले नयी प्रद्योगिकी का विस्तार युवा पीढ़ी में हुआ हैं, आज की पीढ़ी किताबो से ज्यादा मोबाइल,कंप्यूटर और सोशल मीडिया को ज्यादा विश्वसनीय मानती हैं। इसीलिए ‘हूक्ड’ नाम से मोबाइल पुस्तक ऍप्स की सर्जक भारतीय मूल की अमेरिकी व्यवसायी प्रेरणा गुप्ता आज की युवा पीढ़ी को स्नैपचैट पीढ़ी (Snapchat Generation) कह कर सम्बोधित करती हैं। डिजिटल क्रांति का प्रसार,युवाओ की मुट्ठी में देख कर भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने ‘गियान’ (Global Initiative of Academic Network) नेटवर्क का शुभारम्भ 30 नवंबर 2015 को आईआईटी गांधीनगर में किया। नेटवर्क के आरम्भ करने का मुख्य उद्देश्य भारतीय संस्थानों में विदेशी शिक्षाविदों को जुड़ने के लिए प्रोत्साहित करना हैं। मंत्रालय की इस पहल में 38 देशो के 353 विद्वानो को 68 राष्ट्रीय संस्थानों में अध्यापन कराने के लिए जोड़ा जायेगा। अपनी तरह का विशेष नेटवर्क अभियान, केंद्र सरकार के शिक्षा को वैश्विक मानको के अनुरूप ढ़ालने की प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करता हैं।
अगर उच्च शिक्षा के क्षेत्र की बात की जाये तो इसका विस्तार तकनीकी क्षेत्र और प्रबंधन क्षेत्र दोनों को परिभाषित करता हैं। शायद सही भी हैं क्योकि बिना तकनीक और बिना प्रबंधन के किसी राष्ट्र के सशक्त और समावेशी विकास का स्वप्न निराधार हैं। इसीलिए केंद्र सरकार और राज्य सरकारों द्वारा शिक्षा की सार्वभौमिक पहुंच तथा शिक्षा की गुणवत्ता को सुनिश्चित करने के लिए समय-2 पर कई अभियान चलाये गए हैं। जो काफी हद तक सफलता की कहानी लिखते हुए सरकार की शिक्षा के प्रति ज़िम्मेदारी तथा जबावदेही को क्रियान्वन करती हैं क्योकि शिक्षा, किसी राष्ट्र की आर्थिक व्यवस्था और नागरिको के नैतिक उत्थान की कुंजी होती हैं। यदि किसी राष्ट्र में उच्च शिक्षा का विस्तार ज्यादा से ज्यादा होगा तो वह राष्ट्र अपनी पुरातन सांस्कृतिक धरोहर को सुरक्षित रखने के साथ-2 सुसंस्कृत राष्ट्र के नवीनतम ढांचे को आधुनिक प्रयोगो के माध्यम से तैयार करके भविष्य के निर्माण का पथ बनाता जायेगा। शिक्षा को भारतीय समाज का अंग बनाने का प्रयास प्राचीन काल से ही चला आ रहा हैं। इसीलिए इस देश में विश्व का प्रथम विश्वविद्यालय (तक्षशिला विश्वविद्यालय,जो अब अफगानिस्तान में हैं,कभी भारत का समृद्धशाली राज्य हुआ करता था) का सृजन अन्य देशो की सभ्यता विस्तार और शिक्षा की समझ से पहले ही हो गया था। औपनिवेशिक काल में भी शिक्षा के बुनियादी रूप को लागू किया गया वो अलग बात थी कि ये स्वार्थस्वरूप को सिद्ध करने के लिए किया गया। प्रशासनिक आवश्यकताओं और सस्ते लेखागारों की जरुरतो को महसूस करते हुए अंग्रेजी सरकार ने 1813 के चार्टर एक्ट में शिक्षा सुधार के लिए 1 लाख रुपया वार्षिक का प्रावधान किया। हालांकि इस धन का उपयोग दो दशक के बाद ‘लोक शिक्षा की सामान्य समिति’ (General Committee of Public Instructions) के अध्यक्ष लार्ड मैकाले की सिफारिश के बाद 1835 में लार्ड विलियम बैंटिक की सरकार ने अंग्रेजी शिक्षा के लिए खर्च करना सुनिश्चित किया। लेकिन अंत में अंग्रेज़ो का अंग्रेजी भाषा के माध्यम से शिक्षा प्रसार तथा ‘विप्रवेशन सिद्धांत’ (Infiltration Theory) की नीति के कारण शिक्षा प्रसार केवल उच्च वर्ग तक ही सिमट कर रह गया। इस वजह से अंग्रेजी शिक्षित वर्ग और जनसाधारण के बीच गहराई बढ़ती गयी। अंततः अंग्रेजी सरकार की नीति उसकी साम्राज्यवादी विस्तार पर संकट बनकर प्रकट हुई। इसीलिए सरकार ने उच्च तथा अंग्रेजी शिक्षा की अवहेलना करना शुरू कर दिया और उदारवादी शिक्षा पर बल देकर तकनीकी शिक्षा के प्रसार को कम कर दिया। आज़ादी के बाद उच्च शिक्षा की अहमियत को समझते हुए देश के प्रथम प्रधानमंत्री स्वर्गीय पं. जवाहर लाल नेहरू जी के द्वारा, योजना आयोग की सिफारिश के बाद प्रबंधन शिक्षा तथा शोध की आवश्यकता को महसूस करते हुए देश भर में भारतीय प्रबंधन संस्थान (Indian Institute of Management) की स्थापना की गयी जो ‘भारतीय संस्था पंजीकरण एक्ट-1860’ (Indian Societies Registration Act-1860) के तहत एक संस्था की तरह पंजीकृत हैं,और भारत सरकार के केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अधीन कार्य करता हैं। वर्तमान में देश में 19 आईआईएम संस्थान स्थापित हैं, जिनमे से छः संस्थानों की स्थापना की मंजूरी केंद्र सरकार द्वारा 24 जून 2015 को दी गयी। देश में आईआईएम संस्थान कलकत्ता (पं. बंगाल 1961), अहमदाबाद (गुजरात 1961), बंगलोर (कर्नाटक 1973), लखनऊ (उत्तर प्रदेश 1984), कोज़हीकोडे (केरल 1996), इंदौर (मध्य प्रदेश 1996), शिलांग (मेघालय 2007), रोहतक (हरियाणा 2010), रांची (झारखण्ड 2010), रायपुर (छत्तीसगढ़ 2010), त्रिची (तमिलनाडु 2011), उदयपुर (राजस्थान 2011), काशीपुर (उत्तराखंड 2011) तथा भारत सरकार के द्वारा जुलाई 2014 में प्रस्तुत बजट में छः नए आईआईएम, 2015 को नागपुर (महाराष्ट्र), बोधगया (बिहार), विशाखापत्तनम (आंध्र प्रदेश), अमृतसर (पंजाब), सम्बलपुर (ओड़िशा), सिरमौर (हिमांचल प्रदेश) में स्थापित किये गए और 28 फ़रवरी 2015, को प्रस्तुत केंद्रीय बजट में जम्मू और कश्मीर तथा तेलंगाना राज्यों के लिए आईआईएम प्रस्तावित हैं। देश में फैले उच्च गुणवत्तापूर्ण प्रबंधन संस्थान परास्नातक, परास्नातक में डिप्लोमा तथा डॉक्टरेट डिग्री के कोर्स उपलब्ध कराते हैं। इसके अलावा केंद्र सरकार की ‘सबके लिए शिक्षा’ की नीति को मूर्त रूप देने के फलस्वरूप अल्पसंख्यक मंत्रालय के द्वारा अल्पसंख्यको के उच्च शिक्षण संस्थानों के लिए 4 मार्च 2014 को ‘नालंदा परियोजना’ की घोषणा की गयी। जिसकी शुरुआत अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय से की जाएगी। इस योजना कार्यक्रम में शिक्षा, सहयोग, समर्थन, संसाधन और औद्योगिक क्षमता के आधार पर कौशल विकास का समन्वय करना हैं।
अगर अब बात प्रद्योगिकी संस्थानों की जाये तो भारत सरकार ने ‘भारतीय प्रद्योगिकी संस्थानों’ (Indian Institute of Technology) की भी स्थापना ‘इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी एक्ट,1961’ (Indian Institute of Technology Act,1961) के तहत प्रद्योगिकी के उत्थान तथा देश में नवाचार के लिए किया हैं। संस्थानों की अगली कड़ी में केंद्र सरकार द्वारा छः और आईआईटी (IIT) खोलने की योजना हैं। ये संस्थान भी स्नातक, परास्नातक तथा प्रबंधन कोर्स उपलब्ध कराते हैं। इन संस्थानों से डिग्री धारक विद्यार्थी देश-विदेश की प्रतिष्ठित कम्पनियो में अच्छे पैकेज पर नौकरी पाते हैं। जिसकी शुरुवात 9-10 लाख के पैकेज से होती हैं। इन संस्थानों की सफलता यहाँ तक ही सीमित नही रहती बल्कि इन संस्थानों से डिग्री प्राप्त छात्र देश-विदेश की अर्थव्यवस्था में भी अपना सृजनात्मक सहयोग देकर तकनीकी नवाचार का प्रचार करते हैं। इस बात को अमेरिका तथा यूरोप के विकसित देश भी अच्छे से स्वीकार करते हैं।
इसके अलावा निजी क्षेत्र तथा राज्य सरकारों के द्वारा वित्तपोषित बहुत से संस्थान नवाचार, प्रोद्योगिकी और शोध के क्षेत्र में प्रयासरत हैं। किन्तु समस्या तब उत्पन्न होती हैं जब ये संस्थान गुणवत्ता की अनदेखी करते हुए सिर्फ छात्र संख्या बढ़ाने में लगे रहते हैं, तथा शिक्षा की गुणवत्ता पर ध्यान देने के बजाय सिर्फ शैक्षिक संस्थानों की संख्या बढ़ाने का निरंतर प्रयास करते हैं। इस तरह की प्रक्रिया कुकुरमुत्ता प्रक्रिया (Mushrooming Process) कहलाती हैं। जहां इंजीनियरिंग कॉलेज (Engineering College) 2007-08 में 1,511 खुलते हैं, वही इनकी संख्या नाटकीय रूप से बढ़ कर 2014-15 में 3,345 हो जाती हैं। देश में अकेले हर राज्य में 300-400 से ज्यादा इंजीनियरिंग कॉलेज, इंजीनियरिंग डिग्रीयां देते हैं। जहाँ से हर साल 1.5 मिलियन इंजीनियरिंग छात्र पास होकर निकलते हैं। जिनमे से बहुत ही कम प्रतिशत छात्र निकलते ही नौकरी पाते हैं। जो छात्र नौकरी पा जाते हैं उनकी शुरुआत बहुत कम पैकेज (2.5-3.5 लाख) के साथ होती हैं यहाँ तक कि विप्रो (WIPRO), टीसीएस (TCS) जैसी कंपनिया पैकेज की शुरुआत इसी लेवल से करते हैं। भारत देश में पर्याप्त संसाधन, प्रतिभा और नवाचार की अधिक सम्भावनाओ के बावजूद भी यहां के संस्थान विश्व रैंकिंग में अपनी जगह काफी नीचे बनाते हैं। यहां विश्वव्यापी रैंकिंग में भारतीय संस्थान जहाँ 10 स्थानो में जगह तो क्या 100 स्थानो में भी जगह नही बना पाते हैं। नवाचार को बढ़ावा देने तथा शिक्षा की गुणवत्ता के लिए सरकार द्वारा बहुत से प्रयास किये जाते हैं। फिर भी कमी गुणवत्ता के मापन में कही ना कही रह जाती हैं। भारत जैसे समृद्धिशाली देश में कौशल विकास के पर्याप्त संसाधन की उपलब्धता के बावजूद देश में बेरोज़गारी सबसे बड़ी समस्या बनकर उभर आती हैं। सरकार को कौशल विकास की शिक्षा को माध्यमिक स्तर से थोड़ा और ऊपर गुणवत्तापूर्ण बनाना होगा। जिससे देश की प्रतिभा को कही पर भी नाकारा ना जा सके और व्यापक स्तर पर बेरोज़गारी के चक्र को खत्म करने के लिए उसी स्तर में औद्योगिक संस्थानों की स्थापना करनी चाहिए।
-नेहा वर्मा के द्वारा

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